धरा ने किया है स्वर्णिम श्रृंगार

"धरा ने किया है स्वर्णिम श्रृंगार"


आज हमारी धरा सजने लगी है,
सोने की बालियों से किया है श्रृंगार,
खूब कहा था-किसी ने ,
"भारत है सोने की चिड़ियाँ",
वो लोकोक्ति आज सच होने को है।

इस अगहन के सर्द गुनगुनाती धुपों में,
सर्द गर्माहट से भरने लगी हैं बालियां,
सुनहरी होती बालियों को देख,
सजने लगे हैं किसानो के सुनहरे सपने।

छायी है किसानों के चेहरे पे नवउल्लास,
क्योंकि धरा सुनहली चादरों से ढकने लगी है,
कोई महोत्सव से कम नहीं है यह उत्सव,
किसानों को अपनी मंज़िल दिखने लगी है,
सभी मदमस्त हैं अपनी तैयारियों में,
कस्तूरी,श्याम-भोग,जिराफुल,सोनम,
बादशाहभोग आदि सभी,
फिजाओं में अपनी खुशबु बिखेरने लगी हैं,
धरा सुगंध से चरों ओर होने लगी है पावन,
माता अन्नपूर्णा की डोली अब उठने को है,
खलिहान स्वागत करने को हैं आतुर,
भंडारें भी बेसब्री से जोह रही हैं बाट,
माता लक्ष्मी की पालकी अब आने को है,
किसान बने हैं धरा के बाराती,
गृहलक्ष्मियां स्वागत में सजा रहीं बंदनवार,
माता ने सुनहरे दानों से किया है सोलह श्रृंगार,
भंडारे भर गई माता अन्नपूर्णा के सुनहरे दानों से,
किसानो के सच हुए सब स्वर्णिम स्वप्न ।

लो आ गई पूस की ठिठुरती रात,
पुआलों से किसानों की गर्म होगी रात,
क्योंकि बिछावन बनेंगे किसानों के ये पुआल,
सच हो गई है सभी स्वपन किसानों के,
क्योंकि सज गई है हमारी धरा सोने की बालियों से ।


                      ...........📝श्रीमती मुक्ता सिंह

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